चिन्ता एंड चिंतन .
![]() मतलब चिन्ता करोगे तब भी मरोगे और नही करोगे तब भी ...तो चिन्ता ना करके ही मरना बेहतर है। एक और पुरानी कहावत है सुनता था जब बच्चा था ..... चिन्ता चीता का कारण बनती है। चलो देखें चिन्ता के विषय में चिंतन करके की यह है क्या चीज। इसके कई कारण होते हैं ..उदहारण के तौर पे : १। बच्चों को कपडे , खिलौने , खाने और उछल ख़ुद ना कर पाने की चिन्ता। २। थोड़े बड़े होने पर पहनावे , दोस्त और समाज या अपने समूह में सम्मान की चिन्ता। ३। वयस्क होने पर कैरियर, गर्ल फ्रेंड की चिंता । ४। शादी के बाद , बीवी , घर , परिवार , नौकरी , तनखा और टाइम मिले तो वीकएंड में क्या करना है की चिंता । ५। और बच्चे बड़े हो गए तो एक और चक्र उनके चिंतावों की चिंता ... भाई यह सदाहरण तरह से ज़िंदगी जीने वालों की चिंता है ...भगवान् बुदध नही की मानव कल्याण या परोपकार की चिंता रहेगी, या प्रभु इसु की तरह औरों की पीडाओं की चिंता , या राम की तरह मानव वंश को नाश करने वाले को नाश करने की चिंता ....कल्याण के राह में कल्याण करने वालों की चिंता अलग ही होती है। अब जब सदाहरण लोगों की चिन्तावों की बात हो चुकी और फीर उत्तम की तो...कुछ उन लोगों की चिंता भी सुनी जाएः जो असदाहरण हैं ...भाई इन लोगों की चिंता का मुख्या कारण इनकी चिंता से ही शुरू होती है। जैसे की १) झगडा : यार इसे तबाह करने वाली चीज की रेसिपी कह सकतें हैं। २) गुस्सा: झगडे का मुख्य कारण गुस्सा होता है ...और यह आई तो किसी की नुकशान ही करेगी, किसी और की ना कर सके तो यह बड़ी जालीम है ..ख़ुद की कर जाती है...बुल्कुल उसी तरह ...जैसे ॐ बाण ...यह म्यान से निकली तो वापिस अन्दर नही जाती...सामने वाला नही भेदा गया तो ख़ुद की लहू उसे चखानी पड़ती है। ३) तनाव : गुस्सा एक तरह का तनाव ही है ...यह हमारे सभी तरह के फैसले पर बादल लाके घेर देते हैं ..और गलती होना स्वाभाविक हो जाता है....इस तरह यह तनाव चिंता की परमानेंट जड़ हमारे में जमा जाती है॥ फिर बहुत जल्द चीता दिखाई देने लग जाती है। |
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