मानवता नींव बनी बैठी है तलहटी में. ---शीला
पंख से उपजे पंकज से , कोई नही पूछता तुम्हारी जाति क्या है ? औरत के कोख से जनमें ममता से कोई नहीं पूछता, तुम्हारी जाति क्या है अगर यही है परिणाम मानव तुम्हारे मानवता को परखने का तो मैं पंक हूं ममता हूं । ये तो नहीं कि निम्न में संवेदनाएं , भावनाएं , क्षमताएं भी निम्न ही रहती है अगर हाँ तो मैं निम्न हूँ अगर होना है तुम्हे निमग्न मुझमें तो तुम्हें नींचे आना होगा क्योंकि "ऊपर" मेंरा अस्तित्व नकारते हैं लोग फिर भी पीड़ा में सिर्फ़ मुझे सिर्फ़ मुझे पुकारते हैं लोग हाँ में ममता हूँ नीचे बढ़ने वाली नीचे बहने वाली निम्न उच्च की दोस्ती भी शायद अंततः निम्न है । मानवीय प्रवीत्ति तो हमेशा उठाने बैठने की है उठो बढ़ो शीर्ष बनों पर इस निम्न में ही तुम्हे पाँव धरना होगा पंक के पंकज को , मेरे कोख की ममता को निम्न उच्च की समता को तुम्हे स्वीकारना होगा ॥ हो उच्च तो निम्न |
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